Menu
blogid : 12342 postid : 1135571

दलित या छात्र !

नवदर्शन
नवदर्शन
  • 19 Posts
  • 36 Comments

जनसँख्या की दृष्टि से विश्व में पहला स्थान रखने वाले हमारे देश में आये दिन कुछ न कुछ घटनाये घटित होती ही रहती है, कुछ महत्वपूर्ण होती है, कुछ को महत्वपूर्ण बना दिया जाता है ऐसी ही एक घटना जिसे मीडिया और हमारे जाती आधारित राजनीति के धुरंधरों ने अतिमहत्वपूर्ण ही वरन राष्ट्रीय आपदा सरीखा बना दिया वो आंध्रप्रदेश राज्य के हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के एक शोध छात्र रोहित वेमूला की आत्महत्या थी ।

एक शोधार्थी छात्र ने स्वयं के हाथो अपनी ईहलीला समाप्त कर ली, प्रथम दृष्टि में राष्ट्र ने एक मेधावी खो दिया, इस पर शोक व्यक्त करने के बजाय सभी समाचार चैनलों और राजनीतिक हलके ने उस छात्र की पहचान मात्र एक दलित के रूप में की, इस मानसिकता पर दुःख और क्षोभ होता है ।

अब तक यही प्रचलित था कि व्यक्ति की पहचान उसके जन्म से नहीं अपितु उसके कर्मो से होती है पर हमारे देश में शायद व्यक्ति की पहचान का सबसे बड़ा प्रमाण आज भी जाति ही है जो मृत्यु के बाद भी व्यक्ति का साथ नहीं छोडती, तभी तो होनहार छात्र, शोधार्थी होने के बावजूद रोहित वेमुला की पहचान बस एक दलित छात्र के रूप में हुई ।

इस देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा की एक मेधा की असामयिक और दुखद मृत्यु के बाद उसकी मृत्यु के कारणों के बारे में जानने से ज्यादा सभी ने उसकी जाति जानने में उत्सुकता दिखाई। उसकी मृत्यु से पूर्व शायद ही कोई हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला को जानता हो पर मृत्यु के बाद दलित रोहित को सब जान गये ।

अब सवाल कौंधता है कि आखिर देश में आत्महत्या कोई नयी बात नहीं है बल्कि एक दशक से देश का अन्नदाता राष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में कर्ज, भूखमरी और सरकारी तंत्र की लापरवाही से काल के गाल में अपने आप को समाविष्ट किये जा रहा है फिर भी न किसी राजनीतिक दल और न ही किसी नेता न ही किसी संघठन ने इस पर कोई तत्परता दिखाई बल्कि सरकार द्वारा उठाये गये कदम भी तंत्र की लापरवाही से पात्र तक नहीं पहुच पाए। चौकाने वाली बात ये है कि एक छात्र की आत्महत्या पर जिस कांग्रेस उपाध्यक्ष ने हैदराबाद जाने और इस घटना को राष्ट्र के लिए शर्मनाक कहने में जरा भी विलम्ब नहीं किया, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार उनकी स.प्र.ग. सरकार के दौरान 2009-2014 में करीब 78 हजार 507 किसानो ने खुद को काल का ग्रास बना लिया। यह बताने कि आवश्यकता नहीं है कि देश का सबसे कमजोर वर्ग जो शायद दलित से भी ज्यादा बदहाल जीवन जीने को मजबूर है वो इस देश का किसान है।फिर अचानक एक दलित छात्र के आत्महत्या पर सारी संवेदना, भावुकता क्या दिखावा और वोट के लिए किया जाने वला एक प्रपंच मात्र नहीं है ।

बहरहाल मामला जिस छात्र का था तो बताते चले कि रोहित बेमुला की कारस्तानियो की चर्चा नहीं किसी मीडिया ने की न ही किसी राजनीतिक दाल के नेता ने सब बस उसकी मौत को मामला बना अपनी रोटी सकने की फ़िराक में लगे रहे ।

रोहित बेमुला का फेसबुक वाल पढने से आपको खुद पता चल जायेगा कि वो छात्र होने से कही ज्यादा राजनीतिक मामलो में उलझा हुआ था, खुद को दलितों का मसीहा बनने की चाहत में इस छात्र ने अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसियशन से जुड़ कर लगातार उन्मादी और असंतुलित बातो का समर्थक बना रहा।

24 दिसम्बर की अपनी फेसबुक वाल पर इसने मनुस्मृति को जलाते हुए पोस्ट डाली है और इसे मनुस्मृति दहन दिवस बताते हुए हिन्दू समाज के बड़े कारनामो में से एक बताया है, आगे ८ जनवरी को इसने स्वामी विवेकानंद जी को अपशब्द लिखते हुए उन्हें जातिप्रथा, स्त्रीद्वेषी, नकली बुद्धजीवी सहित अहंकारी और मंद-बुद्धि बताया ।

मुंबई हमलो में आतंकी याकूब मेनन की फ़ासी  के विरोध में दहाड़े मर कर रोने वालो में यह भी था इसकी फेसबुक वाल पर इसके हाथो में लिया हुआ वो पोस्टर देखा जा सकता है जिसमें इसने साफतौर  पर लिखा था कि “तुम एक याकूब मारोगे, हर घर में याकूब पैदा होगा।” इसके अलावा विश्वविद्यालय परिसर में बीफ पार्टी का आयोजन भी कराया यही नहीं इसके फेसबुक वाल पर बीफ खाने और बीफ पार्टी के संदभ में ढेरो पोस्ट आपको देखने को मिल जायेंगे ।

उसकी इन्ही गतिविधियों कि शिकायत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सुशील सिंह विश्वविद्यालय प्रशासन तथा बाद में केन्द्रीय श्रम मंत्री और स्थानीय सांसद से की जिस पर उनके द्वारा 4 पत्र मानव संसाधन विकास मंत्रालय को लिखे गये जिसके बाद मंत्रालय ने प्रशासन से रिपोर्ट मांगी। साथ ही न्यायालय तक पहुचे वाद में माननीय न्यायालय के आदेशनुसार रोहित सहित पांच छात्रों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही कि गयी और उन्हें छात्रावास से बहार निकाल दिया गया। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों के शैक्षणिक कार्यो पर किसी तरह की रोक नहीं लगायी गयी ।

इन सबके बावजूद कतिपय कारणों से रोहित ने छात्रावास में दुसरे साथी छात्र के कमरे में आत्महत्या कर ली। आश्चर्य की बात है कि आत्महत्या के समय लिखे सुसाइड नोट में उसने जो कुछ भी लिखा है, “मैं हमेशा से लेखक बनना चाहता था, विज्ञान पर लिखने वाला मुझे प्रकृति से प्यार था, पर मैंने लोगो से प्यार किया यह नही समझ पाया कि वो कब प्रकृति को तलाक दे चुके है।” यह बात शायद उन दलित चिंतको के लिए ही लिखता है जिन्होंने उसके अन्दर नकारात्मकता का बीज रोपित कर दिया था। जिन्होंने अपने स्वार्थ सीधी के लिए समाज को दलित, महादलित और सवर्ण के बीच बाँट देते है । आखिरी पंक्तियों यह लिखा कि मेरी मौत के बाद मेरे किसी भी दोस्त या शत्रु को परेशान न किया जाये साथ ही सबसे लिए धन को उन तक पहुचाने की गुहार भी लगायी है यथासंभव माफ़ी भी मांगी है ।”   जिस तरह की बात उसने अपने पत्र में लिखी है उससे स्पष्ट है कि वो अपनी मौत पर कोई तमाशा नहीं चाहता था कि परन्तु फिर भी उसकी आखिरी इच्छा का सम्मान नहीं किया गया बल्कि सभी चैनलों ने दलित शब्द पर विशेष ध्यान आकर्षित कर मुद्दे को हवा दी और राजनीतिक गलियारों में दलित-कार्ड से वोट बैंक साधने की तैयारी होने लगी ।

इस पूरे घटनाक्रम दिल्ली के मुख्यमंत्री जो राजनीति बदलने आये थे, का कदम बेहद निंदनीय और  शर्मिंदा करने वाला रहा, कुछ दिन पूर्व जब मालदा में सम्प्रदाय विशेष द्वारा उपद्रव किया गया था तो पत्रकारों द्वारा उस घटना के बारे में पूछने पर यह कह कर कि मुझे दिल्ली में ही रहने दे किनारा कर लेना और पंजाब के दलित वोटो को सहेजने की जुगत में छात्र रोहित वेमुला की मौत पर दलित कार्ड को भुनाने हैदराबाद पहुच जाना उनकी कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है ।

याद दिलाते चले कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की एक सवभा में मुख्यमंत्री केजरीवाल के सामने ही आत्महत्या के प्रयास करते हुए एक किसान गजेन्द्र सिंह की जन चली गयी थी उस वक्त भी केजरीवाल जी ने उसकी लाश पर राजनीति करने की पुरजोर कोशिश की और बदले में उसकी बेटी ने कहा कि मेरे पिता की लाश पर राजीनीति ना करे ठीक वैसा ही रोहित के पिता ने कहा कि केजरीवाल मेरे पुत्र की मौत पर राजनीति करने आये थे ।

फिलहाल प्रश्न यह कि यह ऐसा युवा जो पथभ्रष्ट था जिसे सजा उसके गलत कार्यो के लिए न्यायालय के आदेशानुसार मिली, जिसने किन्ही परिस्थितियों में आत्महत्या कर ली के लिए क्या सरकार ही एक मात्र  दोषी है ? उसकी मौत के बाद न्याय की गुहार लगाने वाली मीडिया जो उसके निलम्बन से लेकर छात्रावास से निकाले जाने तक की घटना को बिन्दुवार दिखा रही थी ने पूर्व में ही इस मुद्दे पर समाज का ध्यान क्यों नहीं आकर्षित किया। क्या जीवित रोहित के राष्ट्रविरोधी कृत्यो को समाज द्वारा स्वीकार नहीं करने का भय था या मृत्यु से उपजी एक सहानभूति की आड़ में उसके राष्ट्रविरोधी कार्यो को छुट मिलने का इंतजार। मूल बातो को छिपा सारा आकर्षण उसकी जाती और दलित शब्द पर कर देश को एक बार फिर शर्मसार करने की साजिश की गयी। यह भी एक सच्चाई है कि अगर जीते जी रोहित केजरीवाल या राहुल से मिलने के लिए समय लेते तो शायद वो अपना कीमती समय उसे नहीं देते, पर अज उसके मरते ही उसके दलित होने का फायदा लेने में दोनों के आँख से आसूं थमने का नाम नहीं ले रहे ।

जहाँ तक दलित हत्या का मामला है तो बंगाल में गणतंत्र दिवस परेड की तैयारी कर रहा वायुसेना का जवान अभिमन्यु गौड़ भी एक दलित था जिसकी हत्या बंगाल के सत्तारूढ़ दल के विधायक के बेटे की कार से कुचल कर हो गयी, दुर्भाग्य से किसी भी राजनीतिक शख्शियत ने अफ़सोस जाहिर करने का भी कष्ट नही किया जितनी तत्परता उन्होंने हैदराबाद जाने में दिखाई क्योकि वहां  केंद्र की  मोदी सरकार और उनके मंत्री कि खिलाफ मामला बनाना था ।

देश में हर ओर बह रही जाति, धर्म, संप्रदाय और पंथ की इस आंधी से देश को बचाने और आगे ले जाने की जिम्मेदारी सरकार और समाज दोनों की है परन्तु प्रधानमन्त्री द्वारा रोहित को दलित छात्र बता उसकी मृत्यु पर शोक व्यक्त करना यह दर्शाता है कि राष्ट्र की राजनीति की दशा और दिशा अभी भी ठीक नहीं है । यह देश किसी धर्म, सम्प्रदाय और पंथ का नहीं है इसकी प्रगति और समुन्नति में सभी का बराबर का योगदान है । राष्ट्र का सम्मान करने वाला किसी भी जाति, वर्ग, पंथ धर्म या सम्प्रदाय का हो वो आदरणीय है अन्यथा देश के संविधान के तहत वो दंड का अधिकारी है ।

देश के सभी नागरिक भारतवासी है वो चाहे दलित, पिछड़ा या सवर्ण हम सभी को इस मानसिकता से उबार कर देश की प्रगति और उन्नति को सुनिश्चित करना चाहिए ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh