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दीप-पर्व ….

नवदर्शन
नवदर्शन
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दीपक की लड़ियो से हर एक घर आँगन मुस्काए
काश हमारा भी चरित्र लौ दीपक की हो जाए

खुद रहूँ मैं जलता भीतर ही पर बाहर प्रकाश ही आए
छोटा-बड़ा दुष्ट या सज्जन, मन में यह भाव ना आए

जग में अनाचार का जब भी घोर तिमिर छा जाए
श्री राम सरीखा सबके भीतर बल पौरुष आ जाए

हर ओर विजय और वैभव का हर्षोल्लास सा छाए
भय भूख और भ्रष्टाचार का शीघ्र दलन हो जाए

जो भी चाहे खुशिया पाए हंसे और मुस्काए
दीपावली मंगल हो सबकी दिल यही तराने गाए !

सुमित कुमार

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