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धर्म, जाति और क्षेत्र से कही ज्यादा श्रेष्ठ है – “राष्ट्र”

नवदर्शन
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धर्म, जाति और क्षेत्र से कही ज्यादा श्रेष्ठ और शीर्ष प्राथमिकता पर आता है – “राष्ट्र”
पर यह हमारा दुर्भाग्य रहा है कि मध्यकाल से लेकर आज तक हम इन संकीर्ण सीमाओ से बाहर आकर राष्ट्र के एकरूपीय स्वरूप को आत्मसात नहीं कर पाए ! मध्यकाल या उससे पूर्व जाति और वर्ण के आधार पर बटा भारत बाहरी आक्रमणों की चपेट में आकर मुगलिया सल्तनत का गुलाम रहा तो अंग्रेजो की गुलामी के दौर में भी धर्म आधारित हमारे मतभेदों ने उनकी नीव मजबूत करने का काम किया ! आज जब हम कानूनी तौर पर आज़ाद है फिर भी इन आपसी वैमनश्यो में इस प्रकार उलझे है कि मानवीय उन्नति को कही पीछे छोड हम लगातार साजिशों का शिकार हो अवनति के पथ पर अग्रसर है !
खासतौर पर भारतीय राजनीति के गिरते स्तर और राजनेताओ की स्वार्थपरक निम्नस्तरीय सोच ने समाज को धर्म के आधार पर कुछ इस तरह बाट दिया है कि हम आपस में लड़ कर अपनी क्षति और उनका लाभ करा रहे है !
धर्म कोई भी हो सिर्फ और सिर्फ मानवता की सच्ची सेवा की शिक्षा देता है किसी भी धर्म में हिंसा को श्रेयस्कर नहीं माना गया है !परन्तु तथाकथित धर्माव्लम्बियो के बहकावे में आकर या शासन सत्ता के विशेष प्रश्रय पर समुदायविशेष के लोग उन्माद फैलाना और समाज को विघटित करना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते है जो कतिपय उचित नहीं है !
राष्ट्र होगा तभी हम और आप अपने अपने धर्मो की मान्यताओ के साथ बेहतर तरीके से रह सकेंगे! किसी भी राजनेता या पार्टी के बहकावे में खुद को धर्मोन्मादी बना कर समाज में वैमनश्यता फैलाना राष्ट्र की संप्रभुता को खतरे में डालने जैसा है !
आज भारत की स्थिति बेहद नाजुक दौर में है, हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, सीमाओ पर पडोसी मुल्को द्वारा लगातार अस्थिरता का माहौल कायम किया जा रहा है, सरकार किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुकी है ऐसे में भारत के नागरिक होने के नाते राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाने का वक्त है ! यह समय समाज को तोड़ने का नहीं अपितु जोड़ने का है !
मेरी यह अपील है सभी भारतवासी भाई बहनों से कि किसी भी तरह के बहकावे में आकर खुद को उन्मादी ना बनावे ! मैं यह पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि जिन नेताओ के आश्वासन और बल पर आप अपने समाज को तोड़ रहे है वो स्वयं की स्वार्थसिद्धि के बाद आपके भी नहीं होने वाले है! खासतौर पर लगातार हिंसा पर उतारू धर्म विशेष के बुद्धजीवी साथियों से मेरा विशेष अनुरोध है कि सरकारी तंत्र के प्रोत्साहन पर समाज और देश को तोडना स्वयं की अस्मिता के लिए भी खतरा बनेगा! राजनीतिक पक्ष के लोग हमारे समाज को दो पक्षों में सीधे तौर पर बाटने का मन बना चुके है पर अब यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम अपने राष्ट्र को धर्म आधारित बटवारे का पुनः कोपभाजन ना बनने दे !
प्रेम और सौहार्द से रहने में ही सभी कि भलाई और उन्नति है, और जब सम्पूर्ण विश्व उन्नति के पथ पर अग्रसर है ऐसे समय में राजनीतिक और कूटनीतिक साजिशों का शिकार हो हम अवनति के मार्ग पर जाए यह कहाँ तक उचित है ?
उम्मीद करता हूँ सभी इस बात को समझ देश के विकास व मानवता की रक्षा के लिए स्वयं को सँभालते हुए समाज की एकता के लिए कार्य करेंगे !

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