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बिन बिजली सब सून ………

नवदर्शन
नवदर्शन
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बहुत पहले जब हम प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तब रहीम का यह दोहा कुछ इस प्रकार के भाव में पढ़ा था ” बिन पानी सब सून ” वहाँ पानी का तात्पर्य इज्ज़त, मान-मर्यादा से था| आज कल जब किसी भी राजनैतिक दल और सरकार के लिए इन शब्दों का कोई विशेष प्रयोजन नहीं है तब सीधा सीधा उन्हीं मुदो को स्पष्ट करना उचित है जिन पर बात की जानी है !
मैं बात कर रहा हूँ भारत देश के सबसे बड़े सूबे जो अब केवल जनसँख्या घनत्व के मामले में ही अपनी प्रभुता साबित कर रहा है अर्थात उत्तरप्रदेश ! विगत कुछ सालो के सियासी भूचालो ने इस राज्य से इसका वैभव समाप्त कर दिया है| आज उत्तर प्रदेश पर वित्तीय वर्ष २०१३-१४ के बजट में अनुमानित घाटा 23913.23 करोड़ (तेईस हज़ार नौ सौ तेरह करोड़ उन्तीस लाख रूपये) बताया गया है ! साथ ही समेकित निधि इत्यादि से प्राप्त राजस्व का गुणा भाग करने के बाद समस्त लेन-देन का शुद्ध परिणाम -1731.37 करोड़ (ऋणात्मक एक हज़ार सात सौ इक्तीस करोड़ सैतीस लाख ) अनुमानित किया गया है ! अब विचारणीय तथ्य यह ही कि जिस प्रदेश के सरकार के पास घाटे का बजट हो वो सरकार अपने धन को किस प्रकार के मद में खर्च करती है|
आज उत्तरप्रदेश में मूलभूत सुविधाओं जैसे बिजली, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य और नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रो में आवागमन के लिए सडको का टोटा है पर सरकार का ध्यान इन बुनियादी जरूरतों पर ना होकर अपने वोट बैंक के लिए बंदरबाट पर लगा है !
तुष्टिकरण, बंदरबाट को अपना पैरोकार मान चुकी समाजवादी सरकार ने समाजवाद की नयी परिभाषा गढते हुए प्रदेश में अराजकता और भय का माहौल बना दिया है! जिस समय प्रदेश को ढाँचागत विकास की रफ़्तार बढ़ा खुद को देश के पटल पर स्थापित करने की जुगत करनी चाहिए उस समय सरकार धन का बंदरबाट कर विकास के पथ से प्रदेश को मीलो पीछे खीच रही है !
एक अत्यंत हास्यास्पद योजना के क्रियान्वन पर मन में विषाद उत्पन्न हुआ जिसके तहत उत्तरप्रदेश सरकार ने इण्टर (12 वीं) पास छात्रों को लैपटॉप देना प्रारम्भ किया है, जिस प्रदेश के शहरो में भी मुश्किल से १४ घंटे बिजली मुहैया कराई जा रही हो जहाँ ग्रामीण इलाको में तो बिजली का दीदार भी मुश्किल है वहाँ लैपटॉप का क्या औचित्य है?
लैपटॉप पर खर्च किये धन का उपयोग अगर विद्युत परियोजनाओ के सुधार और नयी परियोजनाओं के क्रियान्वन पर किया जाता तो शायद शहरों के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में विद्युत बहाली हो सकती जिससे वहाँ के छात्रों का भविष्य उज्जवल हो सकता तथा औद्यौगिक क्षेत्रों को मिलने वाली विद्युत प्रदेश के राजस्व को लाभ के दृष्टिकोण से भी लाभकारी सिद्ध होती ! विद्युत आज की एक औपचारिक मूलभूत आवश्यकता है जिसके बिना पेयजल, स्वास्थ्य संबंधी उपकरण, औधौगिक विकास की कल्पना करना बेहद कठिन है, फिर सबसे ज्यादा विद्युत संकटग्रस्त राज्य में लैपटॉप वितरण कहाँ का तार्किक और सराहनीय कदम ठहराया जा सकता है ?
मेरा एक सरल प्रश्न है उत्तरप्रदेश के सम्भ्रांत युवा मुख्यमंत्री जी से कि क्या केवल महज अपना चुनावी घोषणापत्र पूरा कराना ही सरकार का एकमेव लक्ष्य होना चाहिए? सरकार में आने के बाद आप पर ना केवल अपने समर्थको बल्कि पूरी जनता का भार होता है ऐसे में सर्वसमाज का हित सर्वोपरि होना चाहिए, जनता की मेहनत की कमाई जो आप को कर के रूप में प्राप्त करायी जाती है उसका प्रथम उपयोग बुनियादी सुविधाएँ दुरुस्त करने में किया जाना चाहिए!
जब तक मौलिक सुविधाएँ का अभाव होगा तबतक आधुनिक मशीनरी का उपयोग किया जाना बेअसर साबित होगा!
प्रदेश समेत समस्त उत्तर भारत अभी से गर्मी की चपेट में आ चूका है मार्च माह में पड़ने वाली गर्मी को देखते हुए मई में पारे का सहज अनुमान लगाया जा सकता है ऐसी में प्रदेश में विद्युत की खपत का सहज अंदाजा भी लगाया जा सकता है और वर्तमान विद्युत कटौती का परिदृश्य रौंगटे खड़े करने वाला है इस समय जबकि बिजली की खपत मई-जून में होने वाली खपत से ४०% कम है तब पूर्वांचल के इलाकों में १६ से १८ घंटे की कटौती की जा रही है !
मई-जून माह में होने वाली गर्मी और अनुमानित बिजली कटौती करके विचार से ही जनता में भय व्यापत हो रहा है उनकी रही सही उम्मीद को सरकार के विवेकहीन और असंवेदनशील फैसलों ने धराशाई कर दिया है अब जनता को सरकार से बिजली, पेयजल स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओ के सम्बन्ध में कोई उम्मीद नहीं रह गयी है ! जिस सरकार से बजट में इन बुनियादों सेवाओ की दुरुस्तता के लिए उपाय की आस लगायी गयी उसने लोगो को दिवास्वप्न दिखाने का मन बनाते हुए धन और अनावश्यक संसाधनों के बंदरबाट को अपना धेय बना लिया है !
उ.प्र. की समाजवादी सरकार के एक साल के कार्यकाल को देखते हुए ऐसा कही से भी प्रतीत नहीं होता कि यह सरकार जनता की भलाई और प्रदेश के विकास के लिए कटिबद्ध है अपितु उनके अब तक के पूरे कार्यप्रणाली से २०१४ के लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश से निकलने वाली उनकी सीटों पर केंद्रित उनके निहितलाभ का ही दर्शन होता है !
प्रदेश के विकास और सुशासन से कही अधिक आमचुनाव से पहले जनता में भेदभाव, धन के असमान बटवारे और तुष्टिकरण जैसे मानक हथियारों के बलबूते प्रदेश के साथ साथ केन्द्र में भी अपनी स्थिति मजबूत करना ही सरकार का अभीष्ट है !
ऐसे में हम प्रदेश वासियों अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संसाधनों के खर्च पर नियंत्रण रखते हुए अपनी आवाज़ को समय समय पर बुलंदी के साथ इस गूंगी-बहरी सरकार को सुनाना होगा !

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