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अहंकारी और अह्मन्यवादी सोच वाली सरकार …………..

नवदर्शन
नवदर्शन
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सरकार स्वयं के फायदे के लिए हर तरह के संविधान संशोधन कर कई बार संविधान के मूल ढांचे का स्वरूप तक बिगाड़ने से परहेज नहीं करती पर आज जब देश का युवा एक सच्ची और न्यायिक मांग को लेकर कानून की सख्ती के लिए लोकतान्त्रिक तरीके से अपनी मांग रख रहा है तो उसकी मांग पर गंभीरता से विचार करने और कानून का संगठनात्मक स्वरूप मजबूत करने के लिए आवश्यक संशोधन करने से सरकार क्यों बचना चाहती है ?

सरकार देश के 75 लाख योग्य लोगो का अधिकार छीन कर अयोग्य लोगो को देने जा रही थी, प्रोन्नति में आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय के विरोध और इस फैसले को असंवैधानिक घोषित किये जाने के बाद भी देश और समाज में  असमानता लाने वाले इस विघटनकारी कदम को महज अपने वोटबैंक के लिए सरकार संविधान में औचित्यहीन संशोधन करने जा रही है !

खुदरा व्यापार में ५१ फ़ीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के लिए सरकार ने देश भर में हो रहे विरोध को नजरअंदाज करते हुए राजनीतिक दलो के नेताओ की बातों का दरकिनार कर हर संभव हथकंडा अपनाकर संविधान संशोधन को संसद के दोनों सदनों में मंजूरी दिला ली ! जिसके लिए विदेशी कंपनियों से पैसा मिलने की बात भी संज्ञान में आई है जिसके लिए जाँच समिति बिठाई जायेगी |

आप सभी को याद दिला दू कि जनता की अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता पर पाबन्दी लगाने के लिए तथा सोशल नेटवर्किंग पर सरकार की कारस्तानियों का खुलता चिट्ठा देख घबराई इस तानाशाही सरकार ने सूचना तकनीकी अधिनियम २००० (I.T. Act 2000) में अक्टूबर, 2009 को एक घोषणा द्वारा संशोधित किया| इसे 5 फरवरी, 2009 को फिर से संशोधित किया गया, जिसके तहत अध्याय 2 की धारा 3 में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की जगह डिजिटल हस्ताक्षर को जगह दी गई| सरकार खुद के बचाव और जनता के अधिकारों के हनन के लिए कभी भी संशोधन करने से नहीं चूकती है |
एक प्राप्त आकडो के अनुसार जनवरी २०१२ तक संविधान में कुल ९७ संशोधन हो चुके है जबकि पारित संशोधनो की कुल संख्या १०४ है जिसमे सर्वाधिक ८ संशोधन २००४-१२ के बीच संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में किये गए है!

अब सवाल यह कि क्या लोकतंत्र में जनता की आवाज का कोई महत्व नहीं है? क्या जनआन्दोलन का सरकार पर कोई असर नहीं हो सकता? क्या एक बार चुन देने पर सरकारे ५ वर्षों या उससे कम या अधिक समय तक जनता के आवाज को अनसुना करने का एकाधिकार रखती है ?
जब विगत ८ वर्षों में सरकार अपनी मर्जी से अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए संविधान संशोधनो के बूते पर देश के संघीय ढांचे को कमजोर कर सकती है तो  देश के नागरिको की सुरक्षा और स्वायत्ता के लिए जरूरी संशोधन करने से क्यू बचना चाहती है ?
आज जब अपराधियों में कानून का डर धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है, न्याय की दीर्घकालिक प्रक्रिया और व्यवस्था में व्यापत भ्रष्टाचार से वादी में असुरक्षा की भावना प्रबल है, वही अपराध की दर में तेजी से इजाफा हुआ है तो क्या सरकार को कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त बनाये रखने के लिए सजा के प्रावधानों में जरुरी परिवर्तन नहीं कर देना चाहिए!
मैं एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि यह सरकार अहंकारी और अहमन्यवादी हो गयी है, जनता की बात मान कर कार्य करने में सरकार अपनी हार महसूस करती है तथा जनता की आवाज को येन-केन प्रकार दबाना अपना सर्वप्रथम कर्तव्य समझती है !
सरकार में बैठे कुछ लोग सामंतवादी सोच के धनी है जो लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए खतरा है वो इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था को राजतान्त्रिक व्यवस्था की तरह संचालित करना चाहते है जहाँ जनता की आवाज का कोई अधिकार ना हो !
साथियों कांग्रेस शासित हमारे देश का सर्वोच्च सत्ता शिखर एकलमार्गीय गूंगा-बहरा हो गया है इन्हें चुनाव जीतने के बाद की नगाडो की थाप तो सुनाई देती है पर आम जनता का दर्द नहीं !
देश की जनता खासतौर पर युवाओ के जगने का समय आ गया है कि “इस बार अपने ब्रहमास्त्र वोट का उपयोग हमें जरूर करना हैं और सनद रहे कोई बहरुपिया खुद को युवाओ का हितैषी, कोई महिला खुद को अबलाओ व महिलाओ की रक्षक बता हमे गुमराह ना कर पाए !”
हम अपने मताधिकार का प्रयोग कर ऐसी शसक्त, स्वस्थ व लोकतांत्रिक सरकार चुने जो हमारी हर आवाज को ना सिर्फ सुनने को तत्पर हो बल्कि उस पर जल्द से जल्द आवश्यक कार्यवाही भी कर सके !
दानवीय दरिन्दगी की जद में आई, सफरदगंज चिकित्सालय में जिंदगी और मौत से अपनी किस्मत की बाजी लड़ रही उस बहन के मुजरिमों तथा साथ ही समाज और कानून के साथ खिलवाड कर मुक्त घूम रहे मानवभेडियों की कड़ी सजा (मौत या उससे भी बेहतर ) के लिए सरकार से पुनः एक बार स्वार्थ से ऊपर उठकर जरुरी संशोधन कर समाज को आश्वस्त करने की मांग करता हूँ!

“कुछ अगर गैरत हो बाकि कुछ अगर हो इल्म तो
देख ले ये  देश तेरा जा रहा किस ओर को
कर कुछ पुख्ते इंतजामात कुछ दिखा मर्दानगी
देश की गद्दी बैठे  कुछ तो करो सरदारगी”

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