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कल देश की राजधानी में जो अमानवीय कृत्य नरपिशाचों ने अंजाम दिया है उसकी जितनी निंदा कि जाये कम है | ऐसे जघन्य अपराध के लिए सजा-ए-मौत की सजा भी कम लगती है| यद्यपि राजधानी और उसके लगे इलाको में ऐसी घटना पहले भी हो चुकी है पर गंभीर प्रश्न यह है कि आखिर पूर्व में घटी घटनाओ से सबक लेते हुए सरकार और प्रशासन लापरवाह क्यो है?
इस तरह की घटनाओ पर कभी तो लड़कियों के पहनावे पर सवाल खड़े कर दिए जाते है, तो कभी उनकी स्वंत्रता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया जाता है | प्रमुख कारक को नजरअंदाज करते हुए हर बार इस तरह की घटनाओ को ठंढे बस्ते में डाल दिया जाता रहा है | सबसे आश्चर्य की बात यह कि कि राजधानी में पिछले १० सालो से महिला मुख्यमंत्री का शासन है, देश का सर्वोच्च सत्ता परोक्ष रूप एक महिला शासित कर रही है फिर भी गत १० सालो में महिलाओ के साथ घटित वारदातों में जबरदस्त बढावा हुआ है | देश के एक प्रमुख सूबे उ.प्र. में भी महिला मुख्यमंत्री के शासनकाल में महिलाओं के साथ हुए दुराचार के सर्वाधिक मामले दर्ज किये गए !
आखिर इसका क्या कारण है? क्या महिला शासन प्रशानिक तौर पर कमजोर होता है? या फिर सरकार के द्वारा दिखाए गए दिवास्वप्नो ने महिलाओं के अंदर अतिआत्मविश्वास बढ़ा दिया है जो उनके लिए आत्मघाती हो गया |
इस घटना पर कुछ भी लिखने से पहले कलम उस वाकये के बारे में विचार से ही थर्रा जा रही है | पाश्विक प्रवृति की उच्चतम सीमा को भी मात देकर किया गया ऐसा कृत्य जिस पर शायद पशु भी खुद को लज्जित महसूस करेगा !
आखिर क्या वजह है कि दिन प्रतिदिन जब समाज और देश प्रगति पथ पर अग्रसर होता है तो समाज में ऐसी घटनाये घटित होकर हमे दो कदम पीछे ला चिंतन करने पर विवश कर देती है |
इस तरह की घटनाओ के लिए सरकार और हमारी लंबी, पेचीदा, और दीर्घकालिक न्यायप्रणाली दोषी है| इस तरह के अपराध को अंजाम देने के बाद भी मनबढ़ युवको को इस बात का पूरा विश्वास रहता है कि उन्हें किसी प्रकार का दंड या यातना नहीं मिलेगी वो इस भ्रष्ट शासन के साथ अपनी इच्छानुसार कार्य कर समाज की अस्मिता और मर्यादा का पुनः मर्दन कर लेंगे|
जब तक सरकार ऐसे घृणित. अमानवीय कृत्यों के लिए कोई कडे नियम बना कर उसका स्वच्छ और सही ढंग से अनुपालन करने में कामयाब नहीं हो जाती जैसा कि उम्मीद भी नहीं है तब तक इस तरह की घटनाओ पर लगाम कि पूरी जिम्मेदारी समाज को लेनी होगी| प्राथमिक स्तर पर ही गली मोहल्ले में इस प्रकार के मनबढ़ युवको को चिन्हित कर उनपर लगाम लगाना होगा ताकि उनकी मानसिक विकृति आगे चल कर इस तरह की घटनाओ के रूप में ना परिणित हो सके | साथ ही हमें अपनी बच्चियों और स्त्रीयों को भी आत्मरक्षा के लिए तैयार हो जाने के लिए प्रेरित करना होगा |
इस पशुता और अमानवीय दानवीय सोच के धनी लोगो से समाज बखूबी लड़ सकता है अगर हम अपने अंदर के स्वार्थ से जरा ऊपर उठ कर सोचे|
सोचिये क्या आने वाली पीढियों में यह सन्देश जायेगा कि इस देश और समाज में स्त्री की रक्षा करने का दम नहीं ? क्या अपनी सभ्यता और संस्कारों के बदौलत विश्वगुरु रह चूका भारत आज इस तरह से अपने मूल्यों का क्षय होते देखेगा|
नपुंसक सरकारों को चुनना और गुंडों को छूट देना सब कही ना कही हमारी खुद के गलतियों कर परिणाम है अब इसके लिए हमे तैयार होना होगा कि हम अपनी बहनों और स्त्रीयों कि रक्षा खुद करेंगे|
इन वहसी दरिंदों को सरेआम बिना कफ़न दिए फांसी चढा दिया जाना चाहिए इस मांग के साथ मैं सरकार को भान दिलाना चाहता हू कि भारत हमारे लिए महज देश नही हमारी माँ है और माँ की हर बेटी की आबरू का ख्याल रखना आपकी जिम्मेदारी है! अगर आप इस जिम्मेदारी को नहीं निभा सकते तो खुद को सत्ता के आसन से दूर कीजिये वरना आगामी परिणाम आपको केवल सत्ता से ही नहीं अपितु देश के पटल से ही गायब कर देंगे!
“आज हर बेटी की इज्ज़त है लगी अब दावं पर
है सो रहा समाज सारा कर भरोसा हाथ पर ||”
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