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अकर्मण्यता का पर्याय है शिंदे …….

नवदर्शन
नवदर्शन
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कुछ लोग मनहूस होते है पर इस बात को वो महसूस करना ही नही चाहते !
ऐसा ही कुछ वाकया है माननीय गृहमंत्री सुशिल कुमार शिंदे के साथ जब जब उनको किसी जिम्मेदार पद पर आसीन किया गया है उस महकमे का कायाकल्प (विपरीत अर्थ में) हो जाता है पर इसका भान ना तो खुद मंत्री जी को है ना ही उनपर आँख मुंद कर विश्वास करने वाले उनके हुक्मरानों को !
ज्यादा पुराना अभिलेख तो मैं प्रस्तुत करने में मैं असमर्थ हू पर जो भी तथ्य मेरे पास है वो शिंदे साहब की अकर्मण्यता को साबित करने के लिए प्रयाप्त है |

महाराष्ट्र में जन्मे शिंदे साहब अपने शुरूवाती दौर में जिला न्यायालय में काम करते थे, फिर वहाँ से पुलिस में भर्ती हुए, फिर शरद पवार के समर्थन से राजनीति में आये |
जातिगत विशेषाधिकार के बूते राजनीति में इनकी छवि को भूनाने के लिए कांग्रेस ने इनको हर कदम पर आगे रखा | इसी क्रम में २००३ में ये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने पर जैसा कि मैंने बताया कि बड़ी जिम्मेदारी सँभालने में नाकामयाब रहने की फितरत है इनकी वो यहाँ भी नहीं छूटी और मार्च २००३ में मुंबई में ट्रेन में बम धमाके हुए जो इनकी सरकार की एक बड़ी नाकामी थी !
उसके बाद जल्द ही मुख्यमंत्री पद से पदाच्युत कर इन्हें आंध्रप्रदेश का राज्यपाल बनाया गया जहा भी इनका कार्यकाल महज २ साल ही चल पाया |

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में कई अहम पद सँभालते हुए जब ये बिद्युत मंत्री बने तो देश पर अभूतपूर्व बिजली संकट आया जो पूर्ण रूप से इनकी अदूरदर्शिता और गैर जिम्मेदार रवैये की गवाही दे रहा था| जिस घटना के बाद इनका इस्तीफ़ा आना चाहिए था उसके बाद बड़ी बेशर्मी से इनको पदोन्नति दे दी गई और ये देश के गृह मंत्री बन गए और आज गृहमंत्रालय जितनी कुशलता से अपना कार्य कर रहा है उसकी बानगी तो हम सबने अपनी आखों से देख ही लिया है |

गुवाहाटी में हुई घटना हो, असम में हुआ नरसंहार हो, या फिर दिल्ली में हुई ये अमानवीय घटना हर एक घटना चीख-चीख कर शिंदे साहब की अकर्मण्यता की दुहाई दे रहे है |

संसद में नेता सदन होने के बावजूद इस मुद्दे पर हो रही चर्चा में अपनी प्रतिक्रिया जो कि मुद्दे को किसी ठोस नतीजे तक नहीं पंहुचा रही थी के बाद मंत्री जी सदन से निकल लिए|
विपक्षी सांसदों और नेताओ की बात सुनना भी उन्हें गवारा नहीं था!
इतने सब के बाद भी मैं उनसे इस्तीफ़ा नहीं मागूंगा क्योकि जिसे इतने लंबे अनुभव ने कुछ नहीं सिखाया तो उसे मेरे इस लेख से क्या फर्क पड़ेगा|
पर साथियों हमे जरूर ध्यान से समझना होगा कि राष्ट्र की बागडोर सही हाथो में हो ताकि हम खुद को सुरक्षित, संपन्न और गौरवशाली महसूस कर सके !

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