नवदर्शन
- 19 Posts
- 36 Comments
अनजान है तू जिससे उस बात का क्या शिकवा
कह दू तो मैं तुझसे पर, खोने का है डर मितवा
हर शामो सुबह मुझको तेरा ही तसब्बुर है
तू दूर सही हमसे पर मन के ही अंदर है
फिर कैसे भला तुझको हम याद ना आयेंगे | हम |
मिलना या बिछडना तो किस्मत की बात रही
पर प्रीत में मिट जाना अपने ही हाथ सही
तेरी खातिर हम तो जग को ठुकराएंगे | हम |
धर्म ए कहता मरकर भी जन्म लेंगे
तेरी खातिर हम तो ये जुल्म भी सह लेंगे
वादा है फिर भी तुम पर कोई बोझ ना डालेंगे
जितना हो सकता हो खुद को ही संभालेंगे ||
Read Comments