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छींटाकसी मनुष्य की मानसिक विकृति का द्योतक:

नवदर्शन
नवदर्शन
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अक्सर समाज में महिलायों पर छींटाकसी की घटनाये होती रहती है इस तरह की घटनाओं पर ना तो समाज का प्रबुद्ध वर्ग कोई प्रतिक्रिया दिखाता ना ही हमारे कानून में इस तरह के अपराध पर लगाम का कोई प्रावधान है| ऐसे मौकों पर महिलायों की सहनशीलता भी कही ना कही मनबढ़ युवको या शरारती तत्वों का हौसलाफजाई कर जाती है|
पर विचारणीय तथ्य यह है कि जबकि आज हम २१वी सदी में जी रहे है और हमारा देश २०२० तक विकसित होने का स्वप्न सजोये बैठा है ऐसे में हमारे समाज में एक बाद एक नए विकार उत्पन्न होते चले जा रहे है| आश्चर्य का विषय है कि महिलाओ पर छींटाकसी ज्यादातर मामले छोटे शहरों और कस्बाई इलाको में होते है जबकि महानगरों में इसका प्रतिशत कम है| क्या इसकी वहज महानगरों में लोगो के पास समयाभाव या उनकी परिपक्व सोच है जो महिलाओ को अपने कंधे से कंधा मिलाकर काम’ करते देख सहज भाव का अनुभव करते है जबकि छोटे शहरों और कस्बो के लोगो के लिए यह एक बड़ी अनोखी और विषमयकारी बात हो जाया करती है और वो अपनी खीज और प्रतिक्रिया छींटाकसी के माध्यम से निकालने लगते है|
छींटाकसी करने वालो के लिए अपनी मानसिक विकृति से उपजी भावनाओ को सामने वाले तक पहुचाना एक सहज कार्य होता है पर पूरे कार्यकलाप में इस दुर्धर्ष आघात को सहने वाले को जो मानसिक पीड़ा होती है उसका अनुमान लगाना सहज नहीं है!
जहाँ तक प्रश्न पुरुष समाज का है तो मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि छींटाकसी की घटनाये पुरुषों के साथ नहीं होती परन्तु महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओ के तुलना में इसका आकड़ा बहुत कम है|
कई बार इस तरह की घटनाये बड़ी विपत्ति का कारण बन जाती है, जैसा कि हम सब जानते है कि स्त्री वर्ग काफ़ी सवेदनशील होती है इसलिए कई बार इस तरह की घटनाओ पर उनकी प्रतिक्रिया काफ़ी भयावह होती है जो कि आत्महत्या जैसे हृदयविदारक घटनाओ के रूप में परिणित हो जाती है |
ऐसे ही एक घटना अभी कुछ दिन पूर्व उ.प्र. में घटित हुई जब स्कूल में पढ़ने वाली एक बालिका ने अपने नाम के साथ आपतिजनक शब्दों को स्कूल की दीवार पर लिख दिए जाने से हताश और व्यथित हो फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली| ऐसी घटनाये प्रबुद्ध और सभ्य समाज पर कलंक का टीका है और साथ ही अपने साथ कई ज्वलंत प्रश्नों का अम्बार लगा जाती है कि क्या किसी की निजी भावनाओ और संवेदनाओ को मजह आमोद के लिए सरेआम बदनाम किया जा सकता है?  हमारे देश और समाज में ऐसी घटनाओ पर प्रबुद्ध वर्ग की ख़ामोशी का क्या कारण है? कानून और कानून के रखवालो का इस तरह की समस्या पर ध्यान आकृष्ट क्यों नहीं होता?
एक तरफ सरकार आधी आबादी के सशक्तिकरण की बात कर तमाम योजनाए चलाने का दिवास्वप्न दिखा रही तो दूसरी ओर कानून व्यवस्था की लचर ढील से शराती तत्वों का हौसला भी बढ़ा रही है | सरकार की इस दोहरी प्रणाली ने समाज में इस तरह की घटनो को बढोत्तरी दी है|
पर साथियों, इस तरह की सामाजिक विकृति को दूर करने के लिए समाज के लोगो खासतौर पर युवाओ को आगे आना होगा और अपने समाज में व्याप्त इस बुराई को खत्म करना होगा| इस बात का भान हर एक को होना चाहिए कि समाज हमेशा स्त्री–पुरुष दोनों की समान भागीदारी से आगे बढ़ता है, दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए, किसी एक का भी दबना समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकता है |
जो सबसे महत्वपूर्ण बात मेरे समझ से हर एक सोच लेनी चाहिए  वो यह कि जो व्यवहार हम किसी स्त्री के लिए करने जा रहे है अगर वही व्यवहार हमारे सगे, परिवारवाले स्त्री वर्ग के साथ कही घटित हो तो हम पर क्या गुजरेगी ?

साथियों प्रकृति का सबसे अनुपम उपहार स्त्री है जो अद्भुत करुणा, दया और प्रेम की चलती फिरती काया है इसका सम्मान, आदर किया जाना चाहिए|

उम्मीद है हमारा समाज अपने पुराने गौरवशाली इतिहास को याद करेगा जहा कहा गया है “ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता “ और इससे सबक लेते हुए वर्तमान की व्याप्त बुराइयो को सम्माप्त कर और भी सभ्य बनेगा !

जय हिंद जय भारत

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